आत्मानुभूति
सराग – आत्माचिंतन तो सब जीवों को सब गुणस्थानों में हो सकता है (जैसे मैं जीव हूँ/आज्ञाविचय से आत्मा ऐसी-ऐसी है ) ।
वीतराग – आत्मानुभूति/शुद्धोपयोग वीतरागी को ही ।
क्षु. ध्यान सागर जी
सराग – आत्माचिंतन तो सब जीवों को सब गुणस्थानों में हो सकता है (जैसे मैं जीव हूँ/आज्ञाविचय से आत्मा ऐसी-ऐसी है ) ।
वीतराग – आत्मानुभूति/शुद्धोपयोग वीतरागी को ही ।
क्षु. ध्यान सागर जी