जिन सांसारिक चीजों (धनादि) के अभाव में संसारी दुखी होता है, उन्हीं के अभाव में जब आनंद आने लगे जैसे साधुओं को आता है, उसे आत्मिक सुख कहते हैं ।
मुनि श्री सुधा सागर जी
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सुख– सुख आल्हाद रूप होता है,यह दो प्रकार के होते हैं,इन्द़िय सुख और अतीन्द्रिय सुख। इन्द़िय विषय प्रीति का अनुभव होना इन्द्रिय सुख होता है, इसके अलावा जो आत्मस्वरुप के अनुभव से उत्पन्न और रागादि विकल्पों से रहित निराकुलता रुप अतीन्द्रिय सुख है। अतः उक्त कथन सत्य है कि संसारिक चीजों में जो लिप्त रहता है वह हमेशा दुःखी रहता है। जिनको संसारिक चीजों में आनन्द आने लगता है। आत्म स्वरुप में रागादि विकल्पों से रहित और निराकुलता रुप आत्मिक सुख साधु को होता है।
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सुख– सुख आल्हाद रूप होता है,यह दो प्रकार के होते हैं,इन्द़िय सुख और अतीन्द्रिय सुख। इन्द़िय विषय प्रीति का अनुभव होना इन्द्रिय सुख होता है, इसके अलावा जो आत्मस्वरुप के अनुभव से उत्पन्न और रागादि विकल्पों से रहित निराकुलता रुप अतीन्द्रिय सुख है। अतः उक्त कथन सत्य है कि संसारिक चीजों में जो लिप्त रहता है वह हमेशा दुःखी रहता है। जिनको संसारिक चीजों में आनन्द आने लगता है। आत्म स्वरुप में रागादि विकल्पों से रहित और निराकुलता रुप आत्मिक सुख साधु को होता है।