आयुकर्म की आबाधा = जितनी भुज्यमान(वर्तमान-भव) आयु शेष रहने पर बध्यमान(पर-भव) की आयु बंधे,
अंतरमुहूर्त की बध्यमान की आबाधा 100 साल हो सकती है और 100 साल की बध्यमान की आबाधा अंतरमुहूर्त ।
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आयुकर्म का तात्पर्य जिस कर्म के उदय से जीव मनुष्य आदि भवों को धारण करता है, इनके चार भेद होते हैं,नरक,त्रिर्यंच,देव और मनुष्य आयु कर्म होते हैं।आबाधा का तात्पर्य कि कर्म बंध होने के पश्चात यह तुरन्त उदय में नहीं आते हैं, बल्कि कुछ समय बाद परिपक्व होकर उदय में आते हैं, यानी जीव के साथ बंधे हुए कर्म जितने काल तक उदय या उदीरणा के योग्य नहीं होते, उस काल को कहते हैं आबाधा-काल ।
अतः उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।
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आयुकर्म का तात्पर्य जिस कर्म के उदय से जीव मनुष्य आदि भवों को धारण करता है, इनके चार भेद होते हैं,नरक,त्रिर्यंच,देव और मनुष्य आयु कर्म होते हैं।आबाधा का तात्पर्य कि कर्म बंध होने के पश्चात यह तुरन्त उदय में नहीं आते हैं, बल्कि कुछ समय बाद परिपक्व होकर उदय में आते हैं, यानी जीव के साथ बंधे हुए कर्म जितने काल तक उदय या उदीरणा के योग्य नहीं होते, उस काल को कहते हैं आबाधा-काल ।
अतः उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।