आराधना
आराधना क्यों ?
मन और गृह शांति के लिये ।
तो शांति मिली क्यों नहीं ?
क्योंकि अभी तक आराधना के उद्देश्य रहे –
1. संस्कार
2. दु:ख काटना/भौतिक आकांक्षा पूर्ति
3. पुण्य/स्वर्ग पाना ।
इन तीनों उद्देश्यों से आराधना करने वालों की श्रद्धा डगमगाती रहती है।
काम हुआ, श्रद्धा बढ़ी; नहीं हुआ आराधना कम या बंद।
जबकि होना चाहिये था – जीवन को पवित्र बनाना/आत्मा को निर्मल करना ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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आराधना का तात्पर्य सम्यग्दर्शन सम्यक्ज्ञान और सम्यग्चारित्र और तत्व इन चारों का यथायोग्य रीति से उघोतन करना, इन्हें द्वढता पूर्वक धारण करना कहलाता है, हल्का भी हो जावे तो भी पालन होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि आराधना के उद्देश्य रहे हैं, संस्कार, दुःख काटने एवं भौतिक आंकाक्षा पूर्ति, इसके अलावा पुण्य, स्वर्ग पाना, इसमें आराधना करने वाले की श्रद्धा कम या बंद, डगमगाती है। लेकिन आत्मा को निर्मल करना आवश्यक है ताकि आराधना का फल मिल सकता है।
“संस्कार” ke liye “araadhana” kyun nahi karni chahiye ?
संस्कार तो माता पिता से मिलते हैं।
यहाँ कहा गया है कि आराधना से शांति इसलिए नहीं मिल रही क्यों कि वह संस्कार के कारण किये जा रहे हैं।
Okay.