ध्यान-साधना वही कर सकता है जिसे आसन-सिद्धि हो।
मैं कौन हूँ ! कौन से आसन पर बैठा हूँ, इसका भी ज्ञान ना हो यही आसन-सिद्धि है। आसन-सिद्धि उन्हीं को, जिन्हें अशन(भोजन)-सिद्धि होती है। अशन-सिद्धि अर्थात थोड़े भोजन में शरीर चलाने की कला।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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ध्यान का मतलब चित्त की एकाग्रता होना आवश्यक है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि ध्यान साधना वही कर सकता है,जिसे आसन सिद्धि हो। उपरोक्त कथन सत्य है कि अशन सिद्धी के लिए थोड़े भोजन से शरीर चलने की कला होती है। अतः यह सब मुनियों एवं गुरुओं के लिए परम आवश्यक है ताकि मोक्ष मार्ग पर चलने में समर्थ रहते हैं।
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ध्यान का मतलब चित्त की एकाग्रता होना आवश्यक है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि ध्यान साधना वही कर सकता है,जिसे आसन सिद्धि हो। उपरोक्त कथन सत्य है कि अशन सिद्धी के लिए थोड़े भोजन से शरीर चलने की कला होती है। अतः यह सब मुनियों एवं गुरुओं के लिए परम आवश्यक है ताकि मोक्ष मार्ग पर चलने में समर्थ रहते हैं।