इंद्रियाँ
ये अपावन नहीं हैं, क्योंकि ये पुण्य से मिली हैं ।
और पुण्य !
जो आत्मा को पवित्र करे ।
तो पवित्र हुयीं ना !!
मुनि श्री सुधासागर जी
तो पाप की ओर क्यों आकर्षित हो जाती हैं ?
वर्तमान पुरुषार्थ की कमी से (पापानुबंधी पुण्य) ।
चिंतन
ये अपावन नहीं हैं, क्योंकि ये पुण्य से मिली हैं ।
और पुण्य !
जो आत्मा को पवित्र करे ।
तो पवित्र हुयीं ना !!
मुनि श्री सुधासागर जी
तो पाप की ओर क्यों आकर्षित हो जाती हैं ?
वर्तमान पुरुषार्थ की कमी से (पापानुबंधी पुण्य) ।
चिंतन
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One Response
आत्मा के आस्तित्व का ज्ञान के साधन रुप स्पर्शन आदि पांच इन्दियां कही गई हैं।यह पांचो इन्दियां द़व्येन्दिय और भावेन्दिय दोनो रुप में होती है।अतः इन्दियां पुण्य से मिलती है जो आत्मा को पवित्र करती है।लेकिन जब इन्दियां पाप की ओर आकर्षित होती हैं तो पापानुबंधी पुण्य होता है।पापनुबंधी पुण्य के उदय से प़ाप्त बुद्वि, कौशल, निरोग, शरीर आदि क्षमताओं का पापार्जन में लगा देना यह पापानुबन्धी पुण्य का उपयोग है।