उत्तम आकिंचन धर्म
- दुनियाँ के सारे संबंधों के बीच, मैं अकेला हूँ यही भाव रखना आकिंचन धर्म का सूचक है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
- कुछ मिलने की भावना से किसी से मिलोगे तो कुछ ना मिलेगा, छोड़ने की भावना से छोड़ोगे तो कुछ ना छोड़ पाओगे ।
- हमारा है क्या जो हम छोड़ने का अभिमान रख रहे हैं, हमारा तो शरीर भी अपना नहीं वो भी शमसान का है ।
- हमारी तो चेतना है, ज्ञान है उसे हम छोड़ नहीं सकते, यही आकिंचन धर्म हैं ।
One Response
Jo hamara hai i.e. chetna aur gyaan wo hum chod nahin sakte aur nahi wo chodne layak hai. Uske atirikt baki sab chod sakte hain aur chodne layak bhi hain.