उत्तम आकिंचन्य धर्म
त्याग के बाद त्याग के ममत्व का त्याग …आकिंचन्य धर्म है ।
झगड़ा….मेरा, तेरा, ये मेरा ये तेरा;
समाधान ..न मेरा, न तेरा, जग चिड़िया रैन बसेरा ।
जानो मेरा क्या है !
शरीर, सम्पत्ति, सम्बंधी ?
तेरे नहीं, तेरे पास हैं/ सब यहीं छूटने वाले हैं/
संयोग और स्वार्थ के हैं/ कर्माधीन हैं ।
मात्र आत्मा तेरी है, अपने स्वरूप को पहचानो/
सारी यात्रा एकाकी है ।
मालिक नहीं, संरक्षक बनो/ संभाल करो ।
रूख़े नहीं, सरस/ सजग रहो ।
अनाथ नहीं, सनाथ बनो ।
उपभोग कम, उपयोग करो ।
मुनि श्री प्रमाण सागर जी
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उपरोक्त कथन सत्य है कि त्याग के बाद त्याग के ममत्व का त्याग का मतलब आकिंचन्य है । इसमें झगड़ा होता है कि मेरा,तेरा,ये मेरा या ये तेरा।इसका समाधान न मेरा,न तेरा,जग चिड़िया रैन बसेरा। इसलिए जानो मेरा क्या है,शरीर,सम्पति,सम्बंधी ? लेकिन तेरे नहीं तेरे पास है लेकिन सब छूटने वाले हैं। लेकिन यह संयोग और स्वार्थ के है जो कर्मा धीन हैं।मात्र आत्मा तेरी है, इसलिए अपने स्वरुप पहिचान करना है, जबकि सारी यात्रा एकांकी हैं। इसलिए मालिक नहीं संरक्षक बनो और संम्भाल करो।रुखे नहीं सरस और सजग रहो।अनाथ नहीं सनाथ बनो। इसके लिए उपभोग कम उपयोग करो।इसी सिद्धांत को ग़हस्थो को मान्य करना आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।