उत्तम त्याग
- स्व और पर कल्याण के लिये अपनी वस्तु का त्याग ।
- आदर्श त्याग – विषयभोगों का + अंतरंग और बाह्य परिग्रह का ।
- गृहस्थों का त्याग – विषय भोग, कषाय तथा परिग्रह कम करना
तथा चारों प्रकार के दान – आहार, ज्ञान, औषधि, अभय ।
- त्याग का फल कम ज्यादा निम्न कारणों से होता है ।
1. विधि – जैसे आहार विधि पूर्वक देना ।
2. द्रव्य – आहार पात्र, स्वास्थ्य, स्थान और मौसम की अनुकूलता के अनुसार हो ।
3. दाता – भक्ति पूर्वक, मन से दान दें ।
4. पात्र – I. सुपात्र – व्रती लोग II. कुपात्र – बाहर से व्रती पर भाव अच्छे नहीं III. अपात्र – अयोग्य ।
सुपात्र को दान देने से फल अधिक मिलता है ।
- दान/त्याग – त्याग पूरी वस्तु का किया जाता है और इसमें ग्रहण करने वाले की अपेक्षा नहीं होती है ।
दान में कुछ भाग ही दिया जाता है और पात्र की अपेक्षा से देते हैं । यह गॄहस्थों के ही होता है ।
- करुणादान – जैसे रक्तदान, मरण के पश्चात नेत्र दान, प्याऊ आदि लगवाना ।
इसमें पात्र की अपेक्षा नहीं रहती है ।
- कितना दान करें ?
1. उत्तम – आय का 1/4 भाग ।
2. मध्यम – आय का 1/6 भाग ।
3. जघन्य – आय का 1/10 भाग ।
पं. रतनलाल बैनाड़ा जी – पाठ्शाला (पारस चैनल)
- कम से कम उन चीज़ों का तो त्याग कर ही दें –
1. जो आपके लिये हानिकारक हैं ।
2. जिनका आप प्रयोग नहीं करते ।
3. जो आपसे कोई ले गया हो और लौटा नहीं रहा हो ।
बाई जी
One Response
The 3 rd point of last paragraph makes a lot of sense to me bcoz though i realize it , i dont implement it…now onwards i will implement it..,