उत्तम ब्रम्हचर्य
●ब्रम्हचर्य
• पाँचों इंद्रियों के संयम को कहते हैं;
• स्त्रीयों के सम्मान में है;
• असुंदर/कुरूप के प्रति घ्रणा न होना ब्रम्हचर्य है ।
● ब्रम्हचर्य से क्षमता/शक्ति/आत्मविश्वास बढ़ता है ।
• राजा भरत चक्रवर्ती के भाग्य में हजारों रानियां थीं पर उन्हें हजारों की भूख नहीं थी ।
• हम तो हर वस्तु मनोरंजन के लिए ही लेते हैं चाहे वह भोजन हो, कपड़े या पति-पत्नी ही क्यों न हो ।
• अमीर न सही, अमीर बनने का विचार तो करते हो न !
तो ब्रम्हचर्य का क्यों नहीं ?
• जो विकारों को पूर्णता से नियंत्रण कर सकते हैं वे मुनि/साधु बनें,
जो नहीं रख सकते उन्हें एक पत्नि/पति व्रत तो लेना ही चाहिए ।
मुनि श्री अविचल सागर जी
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यह कथन सत्य है कि ब़म्हचर्य पांचों इंद्रियों के संयम को कहते हैं,स्त्रीयों के सम्मान में है, असुंदर और कुरुप के प्रति घ़णा न होना ब़म्हचर्य कहलाता है।आत्मा को पवित्र और पुण्य बनाने के लिए एक ही रास्ता है ब़म्हचर्य यदि यह न बन सके तो संतोष व़त धारण करना चाहिए। अतः जो विकारों का पूर्ण नियंत्रण कर सकते हैं वह मुनि और साधु बनना आवश्यक है।जो नहीं रख सकते हैं उनको एक पति और पत्नी व़त धारण करना चाहिए।