उत्तम ब्रम्हचर्य धर्म
ब्रम्हचर्य >> ब्रम्ह = आत्मा + चर = आचरण/ रमण ।
1) चाम…सारहीन/ चाम पर दृष्टि से काम उत्पन्न ।
यह तन पाय महा तप कीजै, यामें सार यही है ।
2) काम…जब तक प्राप्त नहीं, आकुलता; प्राप्त होने पर, अतृप्ति; अंत में, दुःख/ पीड़ा/ पश्चाताप/ छोड़ना कठिन ।
3) राम…आत्म/आध्यात्म दृष्टि से पवित्रता/ धाम की प्राप्ति ।
4) धाम…पाने के उपाय ..
संस्कारों को महत्व;
गृहस्थों को ब्रह्मचर्याणुव्रत;
आत्मा/ परमात्मा, अशुचि(शरीर की अपवित्रा) भावना का चिंतन;
संकल्प;
लक्ष्मण रेखा का निर्धारण;
नित्य अच्छा सुनें/ पढ़ें;
नियमित खुराक न मिलने से तन सुस्त पर मन तो भ्रष्ट;
मौन रक्खें ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
6 Responses
उपरोक्त कथन सत्य है कि ब़ह्मचर्य का मतलब ब़ह्म बराबर आत्मा एवं चर बराबर आचरण और रमण। इसमें चार बिंदु बताए गये है कि 1 चाम यानी सारहीन और चाम पर द्वष्टी से काम उत्पन्न।यह तन पाय महा तप कीजे यामें सार यही है।2 काम यानी जबतक प्राप्त नहीं,तो आकुलता प्राप्त होने पर अतृप्ति और अंत में दुःख, पीड़ा पाश्चापात और छोडाना कठिन होता है।3 राम का मतलब आत्म,अध्यात्म द्वष्टी से पवित्रता और धाम की प्राप्ति होती है।4 धाम पाने के उपाय, इसमें संस्कारों का महत्त्व, ग़हस्थो को ब़ह्मचर्याणुव़त और आत्मा परमात्मा यानी अशुचि भावना का चिंतन करना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त संकल्प लेना चाहिए लक्ष्मण रेखा का निर्धारण तथा नित्य अच्छा सुनें और पढ़ें, इसके अलावा अनियमित खूराक से तन सुस्त पर मन तो भ़ष्ट, इसके अलावा मौन रखना चाहिए।
“सुस्त” ya “Swasth”?
सुस्त ही है क्योंकि …”नियमित खुराक न मिलने से जैसे तन सुस्त होता है ..”
“नियमित खुराक न मिलने से मन भ्रष्ट” kaise hota hai?
जैसे तन अनियमित ख़ुराक से गिरने लगता है,
वैसे ही मन को नियमित आध्यात्मिक dose न मिलते रहने से, दूषित वातावरण से प्रभावित होकर भ्रष्ट होता जाता है ।
Okay.