उत्तम ब्रह्मचर्य
ब्रह्म में लीन होना ब्रह्मचर्य है। इससे जीवन में निराकुलता आती है और दृष्टि अंतर्मुखी होती है। दुनिया से विरक्त हो जाना ही ब्रह्मचर्य है। ब्रह्मचर्य एक अंक है और बाकी सब शून्य।
10 साल के बच्चे का वजन यदि 50 किलो हो जाए, तो हानिकारक होता है। ऐसे ही 10 साल के बच्चे को अगर काम क्रियाकलाप का ज्ञान हो जाए, तो कितना घातक होगा!
पैदा होते हैं काम के द्वारा, जीवन भर चलता है काम। अंत भी होता है काम के साथ। जब कि होना चाहिए था, सब कुछ राम के नाम। कीचड़ में पैदा होकर कमल बनना था।
स्पर्शन इंद्रिय पूरे शरीर में होती है। जिसने इसको नियंत्रित कर लिया, उसका नियंत्रण पूर्ण हो गया।
वैरागी/ ब्रह्मचारी खड़े-खड़े घर से निकल जाते हैं; रागी पड़े-पड़े घर से निकाले जाते हैं।
सावधानी: तामसिक और गरिष्ठ भोजन नहीं करना चाहिए। फटे कपड़े भी नहीं पहनना चाहिए(स्त्रियों को)।
अष्टमी/ चतुर्दशी को ब्रह्मचर्य तथा शेष दिनों में एक पत्नी/पति व्रत तो सबको धारण करना ही चाहिए।
आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी
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आर्यिका श्री पूर्णमती माता जी ने उत्तम ब़म्हचर्य को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः वासना से मुक्त होकर वात्सल्य की ओर चढना ही ब़म्हचर्य है। ब़ह्म का अर्थ आत्मा है जिसके आत्म तत्व जीने का प़यास, अभ्यास करना परम आवश्यक है। अतः सच्चा ब़म्हचर्य तभी सार्थक होगा कि हर स्त्री एवं पुरुष का सम्मान ओर पवित्रता की दृष्टि रखना परम आवश्यक है।