उत्तम शौच

शौच-धर्म यानी लोभ का अभाव।
लोभी शिकायतों के साथ पैदा होता है और असंतोष के साथ मरता है।
चारों कषाय (क्रोध,मान,माया,लोभ) कुलीन नहीं हैं फिर भी बिना निमंत्रण के नहीं आतीं, रागद्वेष भावों से हम उनको निमंत्रण देते हैं।
लोभ के लिए हम मायाचारी करते हैं, न सफल होने पर मान आता है और उससे क्रोध पैदा होता है।
झाड़ू(पूजा-पाठ)लगाते समय यदि पंखा(कषाय)भी चलता रहे तो क्या घर साफ होगा ?
कहावत है एक पैसा दोगे तो 10 लाख देगा, कैसे ? पैसे का सदुपयोग करोगे धर्म में लगाओगे/ मंदिर बनवाओगे, लाखों लोगों को फायदा होगा।
प्राप्त ही पर्याप्त है।
लोभी अपने और अपनों को भी नहीं छोड़ता इसीलिए उसे अपने भी पसंद नहीं करते।

आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी

Share this on...

One Response

  1. आर्यिका श्री पूर्णमती माता जी ने उत्तम शौच को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः अपने मन एवं दिल को निर्मल बनाने का प़यास करने पर लोभ का मैल धो डालना है, ताकि जीवन में सन्तुष्टि मिल सकती है। अतः अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण करना परम आवश्यक है। लोभ क़ोध, अंहकार, मन एव मान की परिणित होती है। लोभ पापों का बाप कहा जाता है। अतः जीवन में लोभ पर नियंत्रण रखना परम आवश्यक है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives
Recent Comments

September 11, 2024

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930