जिस कर्म प्रकृति का उदय होता है, प्राय: उसी का बंध भी होता है । जैसे अंतराय के उदय से कार्य सिद्धि नहीं हुई तो दु:ख किया, इससे अंतराय कर्म प्रकृति का बंध होगा । ऐसे ही पापोदय में दु:खी होने से पाप, का बंध होगा ।
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