उदय/सत्ता/उदीरणा
आचार्य श्री विद्यासागर जी के अनुसार –
आठों कर्मों का दसवें गुणस्थान तक उदय, सत्ता और उदीरणा चलती रहती है ।
यह नियम है, अन्यथा उदय कार्यकारी नहीं होता जैसे सुई में धागा थूक ( उदीरणा ) के साथ ही पिरोया जाता है ।
कुछ परिस्थितियां अपवाद हैं जैसे बारहवें गुणस्थान के अंत में ज्ञानावरण आदि की 1 आवली पहले तक उदीरणा होगी,
अंत में नहीं क्योंकि आगे कर्म बचे ही नहीं तो उदीरणा कैसे होगी !
पं. रतनलाल बैनाडा जी