उपयोग
1. अशुभोपयोग में यदि आयुबंध हुआ तो कुमानुष, देव भी बने तो भवनत्रिक ।
पापबंध तो होगा ही ।
2. शुभोपयोग में सब शुभ करने के ही भाव होते हैं ।
यह होगा कषाय की मंदता में ।
हर क्रिया को पहले शुभ बना लो जैसे भोजन से पहले णमोकार, बोलने की शुरुआत जयजिनेन्द्र से ।
परमार्थभूत (परम अर्थ = उत्कृष्ट पदार्थ = आत्मा की पूर्णता ) (दोनों नयों से)
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उपयोग का मतलब स्व और पर को ग़हण करने वाले जीव के परिणाम को कहते हैं या जो चैतन्य का अध्यक्षीय है, अर्थात उसे छोड़कर अन्यत्र नहीं रहता है वह परिणाम उपयोग कहलाता है। यह दो प्रकार के होते हैं दर्शनोपयोग एवं ज्ञानोपयोग। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि अशुभोपयोग और शुभोपयोग क़ियायें होती है अतः हर क़िया को शुभ बना लेना आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।