उपयोग
1 से 3 गुणस्थान में घटता हुआ अशुभोपयोग होता है। यह तीव्र कषाय की अपेक्षा से होता है।
4 से 6 गुणस्थान में बढ़ता हुआ शुभोपयोग होता है। यह मंद कषाय की अपेक्षा से होता है।
7 से 12 गुणस्थान में बढ़ता हुआ शुद्धोपयोग होता है। यह अव्यक्त मंद कषाय की अपेक्षा से होता है।
13 से 14 गुणस्थान शुद्धोपयोग का फल है।
शुद्धोपयोग का लक्षण वीतराग चारित्र रूप है।
(प्रवचनसार गाथा 9) – जिन भाषित नव. 09