भावना उपादान प्रधान, कार्य निमित्त प्रधान ।
जब भावना पक जाये तब निमित्त की ओर देखना चाहिये जैसे बच्चा बड़ा होने पर स्कूल की ओर, दीपक में बाती/घी होने पर माचिस की ओर, तभी जीवन प्रकाशित होगा ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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उपादान—किसी कार्य के होने में स्वयं उस कार्य रुप परिणमन को कहते हैं।
निमित्त—जो कार्य करने में सहयोग या जिसके बिना कार्य न हो उसे कहते हैं।
अतः उपादान भावना प़धान और कार्य निमित्त प़धान होते हैं।
जो उदारण दिया गया है वह सत्य है कि जब भावना पक जाये तो निमित्त की ओर देखना पड़ता है जैसे बच्चा बड़ा होने पर स्कूल की ओर, दीपक में घी/बत्ती होने पर माचिस की ओर देखना होता है।
अतः जीवन में सफलता के लिए उपादान के साथ निमित्त की परम आवश्यकता होती है।
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उपादान—किसी कार्य के होने में स्वयं उस कार्य रुप परिणमन को कहते हैं।
निमित्त—जो कार्य करने में सहयोग या जिसके बिना कार्य न हो उसे कहते हैं।
अतः उपादान भावना प़धान और कार्य निमित्त प़धान होते हैं।
जो उदारण दिया गया है वह सत्य है कि जब भावना पक जाये तो निमित्त की ओर देखना पड़ता है जैसे बच्चा बड़ा होने पर स्कूल की ओर, दीपक में घी/बत्ती होने पर माचिस की ओर देखना होता है।
अतः जीवन में सफलता के लिए उपादान के साथ निमित्त की परम आवश्यकता होती है।