साधारण/आम लोग निमित्त के अनुसार परिणमन करते हैं।
महावीर भगवान ने कहा – उपादान की त्रैकालिक शक्त्ति पहचानो, उसे अभ्यास और विशुद्धता बढ़ा कर ऐसा विकसित कर लो कि निमित्त उपादान के अनुसार परिणमन करने लगे।
मुनि श्री सुधासागर जी
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उपादान का तात्पर्य किसी कार्य के होने से जोड़ने स्वयं परिणमन करता है, जेसे रोटी के लिए आटा गीला करना पड़ता है। निमित्त का तात्पर्य जिस कार्य के होने में सहयोग हो या जिसके बिना कार्य न हो। उचित निमित्त होने पर ही तदानुसार ही कार्य होता है। अतः भगवान् ने सत्य कहा है कि उपादान की त्रैकालिक शक्ति पहचानो, एवं उसे अभ्यास और विशुद्वता बढ़ा कर ऐसा विकसित कर लो कि निमित्त उपादान के अनुसार परिणमन करने लगे। अतः जीवन में निमत्त के बजाय उपादान को विकसित करना परम आवश्यक है ताकि कार्य पूरा हो सकता है।
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उपादान का तात्पर्य किसी कार्य के होने से जोड़ने स्वयं परिणमन करता है, जेसे रोटी के लिए आटा गीला करना पड़ता है। निमित्त का तात्पर्य जिस कार्य के होने में सहयोग हो या जिसके बिना कार्य न हो। उचित निमित्त होने पर ही तदानुसार ही कार्य होता है। अतः भगवान् ने सत्य कहा है कि उपादान की त्रैकालिक शक्ति पहचानो, एवं उसे अभ्यास और विशुद्वता बढ़ा कर ऐसा विकसित कर लो कि निमित्त उपादान के अनुसार परिणमन करने लगे। अतः जीवन में निमत्त के बजाय उपादान को विकसित करना परम आवश्यक है ताकि कार्य पूरा हो सकता है।