उपाय-विचय

उपाय-विचय (उपाय चिंतन)…

इससे तीर्थंकर-प्रकृति का बंध होता है। आत्मबोध से ही सबको दु:खों से छुटकारा मिलता है।

सोहम् = सः + अहम् = वह (सिद्ध) + मैं। मेरा स्वरूप सिद्ध जैसा है।

किस उपाय से उस सिद्ध अवस्था को पाऊंगा?

प्रश्न ही प्रश्न करें!

मेरा स्वरूप निरंजन (निः+अंजन = कर्मकालिमा से रहित) है।

हम सबकी विपरीत बुद्धि/अज्ञान का नाश हो; सत्य का संधान हो!

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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4 Responses

  1. उपरोक्त कथन सत्य है कि उपाय विचय का मतलब उपाय चिंतन होता है। अतः ऐसा करने पर तीर्थंकर प़कति का बंध हो सकता है। अतः अपने स्वरूप को जानना आवश्यक है, क्योंकि आत्मा यानी सोहम को जानने के बाद ही, पुरुषार्थ करने पर आत्मा से परमात्मा बन सकते हैं, इसमें अपने कर्मों को नष्ट करना आवश्यक है ताकि कर्मकालिमा से रहित होकर सिद्ध अवस्था मिल सकती है।

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