एकांत/अनेकांत

सम्यक्-एकांत      – जैसे व्यय होते हुये भी अनंत का क्षय नहीं होता है ।
मिथ्या-एकांत       – जैसे वस्तु सर्वथा नित्य ही है, या अनित्य ही है ।
सम्यक्-अनेकांत – जैसे वस्तु द्रव्य दृष्टि से नित्य है, पर्याय से अनित्य ।
मिथ्या-अनेकांत   – जैसे अग्नि गरम भी है, ठंड़ी भी ।
(अकलंक देव के अनुसार –  मजाक, फालतु में बोलना मिथ्या-अनेकांत है )

जिनभाषित – जून-10

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