एहसान

जरा तमीज़ से बटोरना,
बुझे दियों को दोस्तों !
इन्होंने …दीवाली की अन्धेरी रात में
हमें रोशनी दी थी……।
किसी और को जलाकर
खुश होना अलग बात है,
इन्होंने तो …….
खुद को जलाकर
हमें खुशी दी थी .. ..।।

(दिव्या-लंदन)

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4 Responses

  1. Very true.
    Aaj ki duniya mein, jahan log doosron ko dukhi dekhkar khush hote hain, diye jaise log, shayad hi humein mile, joh khud jalkar, humare ghar roshan karte hain.

    1. ऐसे लोग कम तो हो रहे हैं, पर समाप्त नहीं हुए ।
      आचार्य भगवन को किस श्रेणी में रखोगे , जो अपनी आत्म साधना के समय में से हमारे कल्याण के लिये समय निकालते हैं ?

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