कर्तृत्व
कर्ता, भोक्ता, स्वामित्व भावों को कर्तृत्व भाव कहते हैं। पर इनसे अहम् आने की सम्भावना रहती। ये भाव संसार तथा परमार्थ दोनों में आते हैं।
क्षु.श्री जिनेन्द्र वर्णी जी
कर्ता, भोक्ता, स्वामित्व भावों को कर्तृत्व भाव कहते हैं। पर इनसे अहम् आने की सम्भावना रहती। ये भाव संसार तथा परमार्थ दोनों में आते हैं।
क्षु.श्री जिनेन्द्र वर्णी जी
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5 Responses
क्षुल्लक श्री वर्णी जो ने कर्तृत्व को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में कर्त्तव्य में अहम् नहीं आना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
कर्ता, भोक्ता, स्वामित्व भावों को ‘परमार्थ’ me kaise apply karenge ?
ईर्यापथ आस्रव एक समय का होता है तथा उसमें अल्प अनुभाग भी होता है।
कर्ता….. मैंने इतने लोगों का जीवन सुधार दिया।
भोक्ता…. मैं गुरु हूँ तो सेवकों की सेवा/ जयकारों का अधिकारी हूँ।
स्वामित्व… मैं संघ का स्वामी हूँ।
Okay.