कर्तृत्व

कर्ता, भोक्ता, स्वामित्व भावों को कर्तित्त्व भाव कहते हैं। पर इनसे अहम् आने की सम्भावना रहती। ये भाव संसार तथा परमार्थ दोनों में आते हैं।

क्षु.श्री जिनेन्द्र वर्णी जी

Share this on...

4 Responses

  1. क्षुल्लक श्री वर्णी जो ने कर्तृत्व को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में कर्त्तव्य में अहम् नहीं आना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।

  2. कर्ता, भोक्ता, स्वामित्व भावों को ‘परमार्थ’ me kaise apply karenge ?

    1. ईर्यापथ आस्रव एक समय का होता है तथा उसमें अल्प अनुभाग भी होता है।

    2. कर्ता….. मैंने इतने लोगों का जीवन सुधार दिया।
      भोक्ता…. मैं गुरु हूं तो सेवकों की सेवा/ जयकारों का अधिकारी हूं।
      स्वामित्व… मैं संघ का स्वामी हूं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives

April 26, 2024

May 2024
M T W T F S S
 12345
6789101112
13141516171819
20212223242526
2728293031