हम कर्म के आधीन हैं (प्राय:/साधारणजन),
पर कर्म भी पराधीन हैं – द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के ।
(जैसे दलदल के पेड़ अपने बीजों के नीचे नाव जैसी रचना कर देते हैं, सूखे प्रदेशों में अकवा के बीज को दूर दूर उड़ाने के लिये रूऐंदार तथा हलका बना देते हैं)
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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यह कथन भी सत्य है कि हम कर्म के आधीन है लेकिन कर्म भी पराधीन है-द़व्य,क्षेत्र, काल और भाव के।जो उदारण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।कर्म के पराधीन होने के कारण हमारे कर्मो पर भी असर पड़ता है।
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यह कथन भी सत्य है कि हम कर्म के आधीन है लेकिन कर्म भी पराधीन है-द़व्य,क्षेत्र, काल और भाव के।जो उदारण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।कर्म के पराधीन होने के कारण हमारे कर्मो पर भी असर पड़ता है।