कर्म का बटबारा
जो भी कर्म हम करते हैं उनका बटबारा आठों कर्मों में होता है ।
आयु कर्म से ज्यादा नाम और गोत्र कर्म को, नाम और गोत्र से ज्यादा अंतराय, ज्ञानावरण और दर्शनावरण को, इन तीनों से ज्यादा मोहनीय को और सबसे ज्यादा वेदनीय को ।
जैसे जैसे गुणस्थान बढ़ते जाते हैं, कर्म प्रकृतियों की व्युच्छित्ति होती जाती है, अतः उस स्थिति में कर्म का बटबारा भी कम कर्म प्रकृतियों में होगा ।
कर्मकांड़ गाथा : – 192