पेड़ दूसरों को फल और छाया देते हैं; ख़ुद नहीं लेते। फिर भी उन्हें पुण्य नहीं; ऐसा क्यों?
उनके दूसरों को देने के भाव नहीं होते। यही स्थिति पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु की है।
मुनि श्री सुधासागर जी
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कर्मफल चेतना का तात्पर्य ऐसा अनुभव करना कि इसको मैं भोगता हूं। अतः उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।कर्म फल चेतना में स्वयं ही भोगना पड़ता है, जबकि दूसरों को नहीं देते हैं।
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कर्मफल चेतना का तात्पर्य ऐसा अनुभव करना कि इसको मैं भोगता हूं। अतः उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।कर्म फल चेतना में स्वयं ही भोगना पड़ता है, जबकि दूसरों को नहीं देते हैं।