(पढ़ने की उम्र में भोग भोगोगे तो जीवन बर्बाद होगा)
कर्म-भूमि में पैदा होकर, उसे भोग-भूमि बनाने की चेष्टा करोगे तो और क्या होगा !
अपना और अपने आश्रितों (बच्चे, सेवक) का जीवन बर्बाद ही होगा ।
आ. श्री विद्यासागर जी
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कर्म—जीव मन वचन काय के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ करता है वह सब क़िया या कर्म है।कर्म के द्वारा जीव परतंत्र होता है और संसार में भटकता रहता है।
भोग—जो वस्तू एक बार भोगने में आती है उसे कहते हैं जैसे अन्न, पान, गंध, माला आदि।अतः यह कथन सही है कि कर्म भूमि को भोग भूमि बनाने का प़यास करते हैं तो जीवन बर्बाद ही होगा और इसके कारण अपना और अपने आश्रित का जीवन भी बर्बाद होगा।अतः कर्म भूमि में जीव को दान, पुण्य आदि धर्म कार्य करना चाहिए और संयम धारण कर मोक्ष प़ाप्त करने का प़यास करना चाहिए, यही सही कर्म भूमि मानना चाहिए।
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कर्म—जीव मन वचन काय के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ करता है वह सब क़िया या कर्म है।कर्म के द्वारा जीव परतंत्र होता है और संसार में भटकता रहता है।
भोग—जो वस्तू एक बार भोगने में आती है उसे कहते हैं जैसे अन्न, पान, गंध, माला आदि।अतः यह कथन सही है कि कर्म भूमि को भोग भूमि बनाने का प़यास करते हैं तो जीवन बर्बाद ही होगा और इसके कारण अपना और अपने आश्रित का जीवन भी बर्बाद होगा।अतः कर्म भूमि में जीव को दान, पुण्य आदि धर्म कार्य करना चाहिए और संयम धारण कर मोक्ष प़ाप्त करने का प़यास करना चाहिए, यही सही कर्म भूमि मानना चाहिए।