एक सेवक ना आये, डाँटो;
दूसरा ना आये, प्यार से कारण पूछो;
तीसरा ना आये, तो पहले से क्षमा माँगो (पापोदय मेरा था, डाँट तुझे पड़ गयी )
चिंतन
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जैन धर्म में कर्म-सिद्वांत को समझना और विश्वास करना ही सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। जीव मन वचन काय के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ करता है यह सब उसकी क़िया या कर्म है।
कर्म के द्वारा ही जीव परतंत्र होता है और संसार में भटकता है।
अतः जीवन में कर्म-सिद्वांत पर जो विश्वास करता है वह कभी दुखी नही रहता है।जीवन में जो मिला है वह पूर्व कर्मो का फल है।अतः भविष्य के लिए भी सत कर्म करना चाहिए ताकि भविष्य भी उसी आधार पर फल प़ाप्त होगा।
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जैन धर्म में कर्म-सिद्वांत को समझना और विश्वास करना ही सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। जीव मन वचन काय के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ करता है यह सब उसकी क़िया या कर्म है।
कर्म के द्वारा ही जीव परतंत्र होता है और संसार में भटकता है।
अतः जीवन में कर्म-सिद्वांत पर जो विश्वास करता है वह कभी दुखी नही रहता है।जीवन में जो मिला है वह पूर्व कर्मो का फल है।अतः भविष्य के लिए भी सत कर्म करना चाहिए ताकि भविष्य भी उसी आधार पर फल प़ाप्त होगा।