बिच्छू के काटने पर तड़पता रहता है, सो (नींद) नहीं पाता,
ऐसे ही नारकी जीव क्रोध और हिंसा भावों से,
मनुष्य/त्रियंच पर्याय में भी यही स्थिति ।
सांप के काटने से नींद ही नींद/मरण भी,
ऐसे ही स्वर्ग में लोभ और भोग में मदहोशी होती है ।
आ. श्री विद्यासागर जी
Share this on...
One Response
कषाय—आत्मा में होने वाली क़ोधादि रुप कलुषता को कहते हैं।क़ोध, मान, माया और लोभ यह चार प़कार की कषाये होती है।अतः वाह्य निमित्त पाकर कषाय की तीव़ता से जीव के आत्म प़देश शरीर में तिगुने फेल जाते है इसको समुद़घात कहते हैं।अतः ऐसे ही नारकीय जीव क़ोध और हिंसा भावों से जबकि मनुष्य/त्रियंच पर्याय में भी यही स्थिति होती है। अतः कषाय भाव से बचना चाहिए ताकि कल्याण हो सकता है।
One Response
कषाय—आत्मा में होने वाली क़ोधादि रुप कलुषता को कहते हैं।क़ोध, मान, माया और लोभ यह चार प़कार की कषाये होती है।अतः वाह्य निमित्त पाकर कषाय की तीव़ता से जीव के आत्म प़देश शरीर में तिगुने फेल जाते है इसको समुद़घात कहते हैं।अतः ऐसे ही नारकीय जीव क़ोध और हिंसा भावों से जबकि मनुष्य/त्रियंच पर्याय में भी यही स्थिति होती है। अतः कषाय भाव से बचना चाहिए ताकि कल्याण हो सकता है।