कषाय की तीव्रता को प्रमाद कहते हैं ।
इसलिये कुछ आचार्यों ने आश्रव के कारणों में प्रमाद को नहीं लिया ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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8 Responses
कषाय का तात्पर्य आत्मा में होने वाली क़ोधदि रुप कलुषता को कहते हैं।यह चार प्रकार की होती है।
प़माद का तात्पर्य अच्छे कार्यों के करने में आदर भाव न होना होता है इसके अलावा कषाय के तीव्र उदय का नाम प़माद है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि कषाय की तीव्रता को प़माद कहते हैं। इसलिए कुछ आचार्यों के आश्रव के कारणों में प़माद को नहीं लिया गया है।
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कषाय का तात्पर्य आत्मा में होने वाली क़ोधदि रुप कलुषता को कहते हैं।यह चार प्रकार की होती है।
प़माद का तात्पर्य अच्छे कार्यों के करने में आदर भाव न होना होता है इसके अलावा कषाय के तीव्र उदय का नाम प़माद है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि कषाय की तीव्रता को प़माद कहते हैं। इसलिए कुछ आचार्यों के आश्रव के कारणों में प़माद को नहीं लिया गया है।
Pramad me kaunsi kashay ka role rahega?
मिथ्यादृष्टि के अनंतानुबंधी, अविरत के अप्रत्याख्यान, देशव्रती के प्रत्याख्यान, सकलव्रती के संज्वलन का ।
Aur krodh,maan,maya aur lobh me se?
कषाय में तो चारों आजाते हैं ।
I mean, “pramad” me, krodh,maan,maya aur lobh me se kaunsi kashay ki pramukhta hogi?
वैसे तो चारों ही आयेंगी, शायद लोभ की प्रमुखता हो।
Okay.