कामना

कामना उतनी ही करो जितनी औकात हो (पुण्य हों) ।
मज़दूर ने ज़मींदार की शानदार घोड़ी देख, भगवान से ऐसी ही घोड़ी मांगी ।
तभी घोड़ी के घोड़ी पैदा हुई, जमींदार ने घोड़ी की बच्ची मज़दूर के सिर पर रखवाकर मीलों दूर अपने घर ले गया ।

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3 Responses

  1. यह कथन सत्य है कि कामना उतनी करो जितनी औकात हो। अधिक कामना करने से उसमें सन्तुष्टी प़ाप्त नहीं होती है जिससे जीवन हताश
    और दुखी हो जाता है।अतः कामना की जगह पुरुषार्थ
    करो जिससे जो प़ाप्त हो जाये उसको पुण्य का फल समझ कर स्वीकार कर लेना चाहिए तभी जीवन में सुख शान्ती मिल सकती है।

    1. राजगद्दी स्वीकारने के लिए सब भरत जी के पीछे पड़े,
      जबाब….
      यदि राजगद्दी पर बैठने योग्य मेरे पुण्य होते तो मैं बड़ा राजकुमार न पैदा होता!
      2) मज़दूर ने अपने पुण्यों को नज़रअंदाज कर, जमीदार के पुण्यों के बराबरी कर घोड़ी की इच्छा की, तो घोड़ी पर बैठने की जगह घोड़ी को सिर पर लादकर जमीदार के घर तक ले जाना पड़ा ।

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