काल-अतिक्रम
1. काल निकल जाने पर दान देना।
2. आहार में कौन सी चीज किस समय देना।
3. आहार में कौन सी चीज किस क्रम से देना/नहीं देना।
जैसे फल के ऊपर जल दिया तो जुकाम हो सकता है।
4. आहार के प्रारम्भ, मध्य, अंत में देय वस्तु ही देना जैसे प्रारम्भ में ठंडी वस्तु नहीं, सौंफ/लौंग अंत में ही देना।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (त.सू.-7/36)
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काल का तात्पर्य किसी क्षेत्र में स्थित के पदार्थ का काल मर्यादा निश्चय करना होता है,यह भी दो प़कार की होती है, निश्चय एवं व्यवहार काल होते हैं।
मुनि महाराज ने जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में निश्चय काल के व्यवहार काल का आलंबन लेना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।