काल का महत्त्व
हनुमान जब सीता को ढूँढ़ने लंका जा रहे थे तब उन्होंने पूछा – लंका को पहचानूँगा कैसे ?
जहाँ लोग सूर्योदय के बाद भी सोते रहते हों !
सूर्योदय से एक मुहूर्त पहले से लेकर एक मुहूर्त बाद तक का काल शुभ/धार्मिक क्रियाओं का काल होता है।
मुनि श्री सुधासागर जी
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काल का तात्पर्य किसी क्षेत्र में स्थिति पदार्थ का निश्चय करना काल नाम का अनुयोगद्वार होता है। इसके द्वारा पदार्थों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थित का वर्णन किया जाता है, यह दो प़कार के हैं, निश्चय एवं व्यवहार काल। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि जैन धर्म में काल का अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका रहती है, जिसमें सूर्यास्त के एक मुहुर्त पहले से लेकर एक मुहुर्त बाद तक काल शुभ होता है इसमें धार्मिक क्रियाओं का काल रहता है। लेकिन सूर्यास्त के बाद सोने का समय होता है, अतः जीवन में सूर्यादय होने के बाद ही जो भी कार्य करना होता है,वह शुभ होता है।