अंतर-द्वीपज ही !
वहाँ तिर्यंच नहीं होते, मनुष्य ही आधे तिर्यंच की शक्ल के,
कल्पवृक्ष नहीं, मिट्टी खाते हैं ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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8 Responses
भोग भूमि- -जहां कृषि आदि कार्य किए बिना कल्पवृक्ष से प्राप्त भोग उपयोग की सामग्री के द्वारा मनुष्यों जीवन चलता है वही भोग भूमि है। अतः यह कथन सत्य है कि भोग भूमि से विपरीत कुभोग भूमि है जो अंतर द्वीपज ही है जिसमें वहां तिर्यंच नहीं होते हैं, जबकि मनुष्य ही आधे तिर्यंच के शक्ल के होते हैं वहां कल्पवृक्ष नहीं होते हैं बल्कि मिट्टी ही खाते हैं।
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भोग भूमि- -जहां कृषि आदि कार्य किए बिना कल्पवृक्ष से प्राप्त भोग उपयोग की सामग्री के द्वारा मनुष्यों जीवन चलता है वही भोग भूमि है। अतः यह कथन सत्य है कि भोग भूमि से विपरीत कुभोग भूमि है जो अंतर द्वीपज ही है जिसमें वहां तिर्यंच नहीं होते हैं, जबकि मनुष्य ही आधे तिर्यंच के शक्ल के होते हैं वहां कल्पवृक्ष नहीं होते हैं बल्कि मिट्टी ही खाते हैं।
“द्वीपज” ka kya meaning hai, please?
समुद्रों के बीच द्वीप और द्वीपों में रहने वाले “द्वीपज”
“अंतर द्वीपज ही ” ka kya meaning hai?
“ही” यानि समुद्रों/द्वीपों के अलावा और कहीं नहीं ।
Yeh difference hum, “कुभोग भूमि” aur “भोग भूमि” mein bata rahe hain, na?
किसी हद तक, असल में तो यह कुभोग भूमि का वर्णन किया है ।
Okay.