गिरना भी सार्थक हो सकता है, बशर्ते उठते हुये काम की चीज़ लेकर उठें,
जैसे भगवान/गुरुओं की माँओं का गृहस्थी में फंसना ।
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भगवान् /गुरुओं की माताऐं गृहस्थी में अवश्य फंसी रह गईं लेकिन उनके द्वारा जो जन्म दिये गये हैं वह आज हम लोगों के लिए पूज्य बन गये हैं। गिरने के बाद ऊंचा काम करता है, वही साथ॓क हो जाता है। इसलिए गिरने के बाद निराश न हों बल्कि आशा से ऊंचा उठने का प्रयास किया जाना चाहिए।
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भगवान् /गुरुओं की माताऐं गृहस्थी में अवश्य फंसी रह गईं लेकिन उनके द्वारा जो जन्म दिये गये हैं वह आज हम लोगों के लिए पूज्य बन गये हैं। गिरने के बाद ऊंचा काम करता है, वही साथ॓क हो जाता है। इसलिए गिरने के बाद निराश न हों बल्कि आशा से ऊंचा उठने का प्रयास किया जाना चाहिए।