बंदे तद् गुण लब्धये ।
पत्थर, पेड़, डाकू, साधु, रागी या वीतरागी, जिसे भी ध्याओगे/ पूजोगे, उसी के जैसे गुण आयेंगे, अंत में वही बनोगे ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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गुण का मतलब जो द़व्य को दूसरे द़व्य से प़थक करता है,यह गुण सदा द़व्य के आश्रित रहते हैं। जैन धर्म भावनाओं के ऊपर रहता है,जैसी जिसकी भावना होती है , उसको वही फल प्राप्त होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि पत्थर पेड़ डाकू साधु,रागी या वीतरागी, जिससे भी ध्याओगे एवं पूजोगे,उसी के गुण आयेंगे और अंत में यही बनते हैं। अतः जीवन में वीतरागता की पूजन करना एवं ध्यान करना परम आवश्यक है ताकि जीवन में उक्त पद मिल सकता है।
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गुण का मतलब जो द़व्य को दूसरे द़व्य से प़थक करता है,यह गुण सदा द़व्य के आश्रित रहते हैं। जैन धर्म भावनाओं के ऊपर रहता है,जैसी जिसकी भावना होती है , उसको वही फल प्राप्त होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि पत्थर पेड़ डाकू साधु,रागी या वीतरागी, जिससे भी ध्याओगे एवं पूजोगे,उसी के गुण आयेंगे और अंत में यही बनते हैं। अतः जीवन में वीतरागता की पूजन करना एवं ध्यान करना परम आवश्यक है ताकि जीवन में उक्त पद मिल सकता है।