चतुष्टय
जो स्व-चतुष्टय को समझ लेता है, वह पर-चतुष्टय का आलंबन नहीं लेता, क्योंकि वह जानता है कि दोनों में बराबर शक्तियाँ हैं। ज़रूरत स्व-चतुष्टय की शक्तियों को अनावरित करने की है।
व्यवहार में द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव इन्हें प्रभावित करते हैं। इनकी सहायता से तथा सामायिक एवं ध्यान से शक्तियों को बढ़ाया भी जा सकता है।
निश्चय चतुष्टय को क्षेत्रादि प्रभावित नहीं करते।
मुनि श्री सुधासागर जी
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उपरोक्त कथन सत्य है कि जो स्वयं चतुष्टय को समझने लेता है,वह पर-चतुष्टय का आलम्बन नहीं लेता है, क्योंकि सभी में समान शक्तियां होती हैं। इसमें निश्चय चतुष्टय को क्षेत्रादि प़भावित नहीं करते हैं। स्वयं की आत्मा में डुबने पर क्षेत्र काल प़भावित नहीं करते हैं।