तीर्थ-स्थानों पर छत्रों को बार बार चढ़ाने में दोष नहीं है क्योंकि वे स्थापित किये जाते हैं जैसे मूर्ति को स्थापित (अभिषेक के बाद) किया जाता है ।
स्वाहा करके जो चीजें/द्रव्य चढ़ाये जाते हैं, उन्हें दुबारा नहीं चढ़ा सकते, वह निर्माल्य हो जाता है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
Share this on...
One Response
निर्माल्य का तात्पर्य जो मंत्रोच्चार के द्वारा सच्चे देव शास्त्र गुरु के सम्मुख चढ़ाई गई वस्तु होती है, यदि उस वस्तु को स्वयं प़साद रुप में ग़हण करते हैं तो अंतराय कर्मों का बंध होता है। अतः मुनि श्री सुधासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि तीर्थ स्थानों पर छत्रों को चढ़ाने में दोष नहीं लगता है, जैसे मूर्ति को अभिषेक के बाद स्थापित किया जाता है,इसी प्रकार छत्रों कोई स्थापित किया जाता है, उसमें कोई दोष नहीं रहता है।
One Response
निर्माल्य का तात्पर्य जो मंत्रोच्चार के द्वारा सच्चे देव शास्त्र गुरु के सम्मुख चढ़ाई गई वस्तु होती है, यदि उस वस्तु को स्वयं प़साद रुप में ग़हण करते हैं तो अंतराय कर्मों का बंध होता है। अतः मुनि श्री सुधासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि तीर्थ स्थानों पर छत्रों को चढ़ाने में दोष नहीं लगता है, जैसे मूर्ति को अभिषेक के बाद स्थापित किया जाता है,इसी प्रकार छत्रों कोई स्थापित किया जाता है, उसमें कोई दोष नहीं रहता है।