जाति
प्रकृति ने तो मनुष्य की एक ही जाति बनायी है – “मनुष्य” (जैसे एकेन्द्रिय…पंचेन्द्रिय जीव) ।
मनुष्य ने उसमें कर्मों के अनुसार भेद कर दिये।
हर मनुष्य की चार जाति बन जाती हैं- सुबह-ब्राम्हण, दिन में वैश्य, शाम को क्षत्रिय, रात को शुद्र।
धर्म, भेद/लड़ाई नहीं कराता, धर्मों के अनुयायी कराते हैं;
वे आत्मा को ना तो जानते हैं, ना ही मानते हैं, इसीलिये बाह्य में जीते हैं।
आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी
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उपरोक्त कथन सत्य है कि श्री आदिनाथ भगवान जी ने,समाज को चार वर्गों में बांटा था ? ब़ाम्हण,वैश्य, क्षत्रिय एवं शूद़। अतः प्राकृतिक धर्म में मनुष्य की एक ही जाति बनाई गई है। अतः मनुष्य के कर्मों के अनुसार भेद कर दिए गए हैं।एक इन्द़िय से लेकर पांच इन्दिय।धर्म भेद नहीं कराता है, धर्मों के आधार पर अनुयाई करा
सकते। अतः जो आत्मा को न जानते एवं मानते हैं वह ब़ाम्ह ही जीते हैं। अतः धर्म में जो आत्मा पर श्रद्वान करता है वही जीवन में अपना कल्याण करने में समर्थ हो सकतें हैं।
“सुबह-ब्राम्हण, दिन में वैश्य, शाम को क्षत्रिय” kyun
kaha ?
सुबह ज्ञान में रुचि, दोपहर को अर्थ अर्जन, शाम को रक्षा के भाव।