जीव की जघन्य अवगाहना एक प्रदेश क्यों नहीं ?
सबसे छोटा शरीर (सूक्ष्म निगोदिया लब्धपर्याप्तक का) लोक का असंख्यातवाँ भाग होता है।
जीव की अवगाहना इससे कम नहीं हो सकती।
तत्त्वार्थसूत्र टीका – पेज 117
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4 Responses
उपरोक्त कथन सत्य है कि जीव की जघन्य अवगाहना एक प़देश क्यों नहीं, क्योंकि सबसे छोटा शरीर यानी सुक्ष्म निगोदिया लब्धपर्याप्तक का यानी लोक का असंख्रातववो भाग होने है! अतः उक्त कथन कि जीव की अवगाहना इससे कम नहीं हो सकती है!
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उपरोक्त कथन सत्य है कि जीव की जघन्य अवगाहना एक प़देश क्यों नहीं, क्योंकि सबसे छोटा शरीर यानी सुक्ष्म निगोदिया लब्धपर्याप्तक का यानी लोक का असंख्रातववो भाग होने है! अतः उक्त कथन कि जीव की अवगाहना इससे कम नहीं हो सकती है!
‘लोक का असंख्यातवाँ भाग’ kya ‘एक प्रदेश’, se kam hota hai ?
नहीं,
लोक का असंख्यातवां भाग एक प्रदेश से बहुत ज्यादा होता है तभी तो कहा कि जीव एक प्रदेश में नहीं पर लोक के असंख्यातवें भाग में रहता है।
Okay.