पारिणामिक भाव है । यहाँ जीवत्व को ज्ञान चेतना माना, अत: सिद्धों में 9 क्षायिक + 1 जीवत्व = 10 भाव माने हैं । पर श्री धवला (तथा आ. श्री भी) सिद्धों को जीव नहीं मानते क्योंकि उनके 10 प्राण नहीं हैं, इस अपेक्षा से जीवत्व को औदायिक माना है ।
पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
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