अज्ञान से ज्ञान, दु:खी से सुखी, असाता से साता, रूपी से अरूपी, लौकिक से अलौकिक, शरीरी से अशरीरी, आश्रित से स्वाश्रित….
बनना ही जीवन का उद्देश्य होना चाहिए ।
चिंतन
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जीवन के उद्देश्य के लिए जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। इसमें अज्ञान से ज्ञान,दुखी से सुखी, असाता से साता,रुपी से अरुपी,लौकिक से अलौकिक ,शरीरी से अशरीरी, आश्रित से स्वाश्रित होना परम आवश्यक है।
इसके लिए धर्म का आश्रय लेना आवश्यक है, चाहे लौकिक क्षेत्र हो या परमार्थ का क्षेत्र हो।
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जीवन के उद्देश्य के लिए जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। इसमें अज्ञान से ज्ञान,दुखी से सुखी, असाता से साता,रुपी से अरुपी,लौकिक से अलौकिक ,शरीरी से अशरीरी, आश्रित से स्वाश्रित होना परम आवश्यक है।
इसके लिए धर्म का आश्रय लेना आवश्यक है, चाहे लौकिक क्षेत्र हो या परमार्थ का क्षेत्र हो।