ज्ञानी शरीर और आत्मा के भेद को जानता/मानता है,
उलझाता नहीं/सुलझाता है,बिखरे को समेटता है;
पर विद्वान नहीं ।
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आजकल बहुत विद्वानों का अपार समूह हो गया है लेकिन वह जब तक भेद विज्ञान को नहीं समझेंगे तब तक वह ज्ञानी नहीं कहे जा सकते हैं। जब तक शरीर ओर आत्मा के भेद को नहीं समझेंगे तब तक वह अज्ञानी ही कहलायेंगे। एक बार एक विद्वान आचाय॓ श्री विधासागर महाराज के पास गये थे उसने बताया कि समयसार को 100 बार पढ़ लिया है। महाराज ने कहा कि मैंने एक ही बार पढा है तभी से इस वेश में हूं। अतः वह अज्ञानी ही कहा जायेगा।
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आजकल बहुत विद्वानों का अपार समूह हो गया है लेकिन वह जब तक भेद विज्ञान को नहीं समझेंगे तब तक वह ज्ञानी नहीं कहे जा सकते हैं। जब तक शरीर ओर आत्मा के भेद को नहीं समझेंगे तब तक वह अज्ञानी ही कहलायेंगे। एक बार एक विद्वान आचाय॓ श्री विधासागर महाराज के पास गये थे उसने बताया कि समयसार को 100 बार पढ़ लिया है। महाराज ने कहा कि मैंने एक ही बार पढा है तभी से इस वेश में हूं। अतः वह अज्ञानी ही कहा जायेगा।