णमोकार
पूर्ण मंत्र । पाँचों परमेष्ठियों को एक सा सम्मान । इसीलिए उन सबके लिए एक सा संबोधन – “नमोस्तु” ।
जबकि उनके नीचे वालों के अलग-अलग संबोधन – वंदामि, इच्छामि, वंदना, जय जिनेंद्र ।
पाँचों मंगल, उत्तम, शरण जाने योग्य ।
श्रावक प्राय: असुरक्षित अनुभव करता है पर णमोकार में शरण ही शरण ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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उपरोक्त कथन सत्य है कि णमोकार मंत्र को महामंत्र कहा जाता है यह अनादिकाल काल से प्रचलित है।इस मंत्र में पांच परमेष्ठियों को एक सा सम्मान दिया गया है, चाहे अरहंत , सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय या साधु हों,सभी को नमोस्तु नमोस्तु कहते हैं। जबकि यह सत्य है कि नीचे वालों को अलग-अलग संबोधन किया जाता है,वंदामी आर्यिका को,इच्छामी ऐलक या छुल्लक को कहा जाता है , जबकि ब़ह्मचारिणी को वंदना एवं श्रावकों को आपस में मिलने पर जयजिनेंद्र कहा जाता है। अतः पांचों मंगल, उत्तम,शरण में जाने योग्य हैं । जबकि श्रावक असुरक्षित अनुभव करता है, इसलिए णमोकार मंत्र में ही शरण मानता है।