तत्त्व सम्यक्त्व भी, मिथ्या भी;
द्रव्य नहीं (न सम्यक्त्व, ना ही मिथ्या)।
1. वस्त्रधारी को मुनि तत्त्व का अनुभवन नहीं हो सकता।
2. मोक्ष तत्त्व का अनुभवन शरीरी को नहीं।
मुनि श्री सुधासागर जी
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तत्व का तात्पर्य जिस वस्तु का जो भाव है, अथवा जो पदार्थ जिस रुप में अवस्थित है,उसका उस रुप होना ही तत्व है,तत्व के सात रुप होते हैं।
उपरोक्त कथन सत्य है कि तत्व सम्यक्त्व भी और मिथ्या भी लेकिन द़व्य नहीं होता हैं। उपरोक्त कथन भी सत्य है कि मोक्षतत्व का अनुभवन शरीर का नहीं है। अतः जीवन में मोक्षतत्व का आर्दश बनाना ही महत्वपूर्ण है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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तत्व का तात्पर्य जिस वस्तु का जो भाव है, अथवा जो पदार्थ जिस रुप में अवस्थित है,उसका उस रुप होना ही तत्व है,तत्व के सात रुप होते हैं।
उपरोक्त कथन सत्य है कि तत्व सम्यक्त्व भी और मिथ्या भी लेकिन द़व्य नहीं होता हैं। उपरोक्त कथन भी सत्य है कि मोक्षतत्व का अनुभवन शरीर का नहीं है। अतः जीवन में मोक्षतत्व का आर्दश बनाना ही महत्वपूर्ण है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।