तप / त्याग
त्याग बाह्य वस्तु का,
तप अंतरंग इच्छाओं का (इच्छा निरोध: तप:)
मुनि श्री सुधासागर जी
अपेक्षा निरोधः तपः
आचार्य श्री विद्या सागर जी
त्याग बाह्य वस्तु का,
तप अंतरंग इच्छाओं का (इच्छा निरोध: तप:)
मुनि श्री सुधासागर जी
अपेक्षा निरोधः तपः
आचार्य श्री विद्या सागर जी
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तप-इच्छायों का निरोध करना तप हैं।तप के द्वारा कर्मों की निर्जरा होती है यह भी दो प्रकार के होते हैं ब़ाह्य तप और अभयन्तर तप। त्याग—सचेतन और अचेतन समस्त परिग़ह की निवृती को त्याग कहते हैं। अतः यह कथन सत्य है कि त्याग ब़ाम्ह वस्तु का होता है जबकि अंतरंग इच्छाओं को निरोध को तप कहते हैं।