तीर्थंकर प्रकृति

तीर्थंकर प्रकृति का बंध पहले नरक में तो अपर्याप्त अवस्था में बंधता रहता है  , ( क्षायिक सम्यग्द्रष्टि के जैसे श्रेणिक महाराज )
दूसरे और तीसरे नरक में सिर्फ़ पर्याप्त अवस्था में ही बंधता है, क्योंकि यहां जाते समय सम्यग्दर्शन छूट जाता है तथा अंर्तमुर्हुत के लिये तीर्थंकर प्रकृति का बंध भी नहीं होता है ।

कर्मकांड़ गाथा : – 105-107

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