1) सब स.द्रष्टियों के कर्मबंध अंतःकोडाकोडी-सागर के ही होते हैं।
2) उन कर्मों का आबाधा-काल अ.मुहूर्त ही रहेगा।
3) चूंकि कर्म-बंधन अंतःकोडाकोडी-सागर है, इसलिये उदय अ.मुहूर्त के बाद शुरू हो जायेगा,
पर उस समय वह जीव अन्य पर्यायों में होगा, सो तीर्थंकर-प्र.का उदय परमुख ही हो सकता है।
जब वह 13/14 गु.स्थान में आयेगा तब उदय स्वमुख शुरू हो जायेगा।
5 Responses
Can its meaning be explained please?
1) सब स.द्रष्टियों के कर्मबंध अंतःकोडाकोडी-सागर के ही होते हैं।
2) उन कर्मों का आबाधा-काल अ.मुहूर्त ही रहेगा।
3) चूंकि कर्म-बंधन अंतःकोडाकोडी-सागर है, इसलिये उदय अ.मुहूर्त के बाद शुरू हो जायेगा,
पर उस समय वह जीव अन्य पर्यायों में होगा, सो तीर्थंकर-प्र.का उदय परमुख ही हो सकता है।
जब वह 13/14 गु.स्थान में आयेगा तब उदय स्वमुख शुरू हो जायेगा।
Aur agar woh jeev “teerthankar” paryaay mein hua to?
तीर्थंकर पर्याय में भी 12 गुणस्थान तक परमुख,
13,14में स्वमुख
Okay.