तीर्थंकर-प्रकृति बंध सिर्फ 16 कारण भावना भाने से नहीं होता बल्कि उसके साथ आचरण और ज़रूरी विशुद्धता भी होनी चाहिये ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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यह कथन सत्य है कि तीर्थकर-प़कृति सिर्फ सोलह भावना भाने से ही नहीं होता है बल्कि सम्यग्दर्शन और सम्यक्चारित्र का पालन करना आवश्यक है।सम्यक्चारित्र में विशुद्वता भी होना चाहिए ताकि तीर्थंकर-प़कृति बंध हो सकता है।
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यह कथन सत्य है कि तीर्थकर-प़कृति सिर्फ सोलह भावना भाने से ही नहीं होता है बल्कि सम्यग्दर्शन और सम्यक्चारित्र का पालन करना आवश्यक है।सम्यक्चारित्र में विशुद्वता भी होना चाहिए ताकि तीर्थंकर-प़कृति बंध हो सकता है।